27 Aug 2009
हारी क्यु है?
मेरा जीना इतना भारी क्यु है?
तेरा हर ज़ख्म इतना कारी क्यु है?
तेरा हर ज़ख्म इतना कारी क्यु है?
वहेमको यकिनमे बदलते देखा,
पूछते तुम हो,अश्क ज़ारी क्यु है?
फूलोकी तरह संभालके रखी थी मेंने,
याद आते ही चलती आरी क्यु है?
नहीं बक्षे गये लैला और मजनु तक,
दिवानोके पिछे दुनिया सारी क्यु है?
जब गम बट रहा था तेरी बारगाहमे,
कहीये सबसे पेहले मेरी बारी क्यु है?
तुज़े भुलानेका वादा किया था दिलसे,
तो फिर शामसे यह बेकरारी क्युं है?
तुम न आये हो, न आओगे कभी भी,
इन्तेज़ारमे यह जिंदगी गुज़ारी क्यु है?
कदम रखे थे फूंक फूंक कर उसने,
फिर सपना हर एक बाज़ी हारी क्यु है?
सपना
अति सुंदर रचना.
गुलझारसा’बकी एक रचना याद आ गई !
शामसे सांस भारी है; बेकरारी बेकरारी है.
तेरी यादमें रो रो के एक एक पल गुजारी है.
निंद आंखोमें नहिँ न मेरे दिलको करार
यादोके भंवरमें जिंदगी हमारी उतारी है…
નટવર મહેતા
August 28th, 2009 at 12:52 ampermalink
વાહ વાહ ખૂબ સરસ. એક એકથી ચઢિયાતા શેર.
Heena Parekh
August 28th, 2009 at 5:30 ampermalink
बहुत खुब !!
एक-एक शेर में दम है.
जब गम बट रहा था तेरी बारगाहमे,
कहीये सबसे पेहले मेरी बारी क्यु है?
कदम रखे थे फूंक फूंक कर उसने,
फिर सपना हर एक बाज़ी हारी क्यु है?
Keep it…आपको दाद देने के लिए हमारे पास लफज नहीं है.
પ્રવિણ કે.શ્રીમાળી
August 28th, 2009 at 10:14 ampermalink
कभी नात ऒर कबी ह्म्द।
जब आशिक़ाना शाइरी हो तो ऎसा लगता हॆ के सपना अपने मॆहबूब के फ़िराक़ में मारी मारी फिर रही हॆ। अपने से शिकायत हॆ के
कदम रखे थॆ फूंक फूंक कर उसने
फिर सपना हर एक बाज़ी कयु हॆ?
बोहोत अच्छे शेर कहे हॆं
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िन्दगी कियूं न भारी लगे
Kalimullah
August 29th, 2009 at 7:31 ampermalink
आपकी हिन्दी गझल बढिया हैं! बहुत पसंद आई. अभिनंदन!
सुधीर पटेल.
sudhir patel
August 30th, 2009 at 9:30 pmpermalink
Sapana bahot khoob
Tum na aye ho na aoge kabhi
Intezar mein yeh zindagi guzari kyon hai
Meri rooh tak pahonch jane wali ye nazm bahot hi enjoy kiya.
Shenny Mawji
September 12th, 2009 at 5:55 ampermalink
presentation of photographs along with writings are excellent.
Congratulations..
keep it up.
do visit this link : http://www.zero2dot.org
http://www.shreenathjibhakti.org
http://drsudhirshah.wordpress.com
Dr.Sudhir Shah na snehal vandan
Dr Sudhir Shah
September 18th, 2009 at 3:47 pmpermalink
फूलोकी तरह संभालके रखी थी मेंने,
याद आते ही चलती आरी क्यु है?
ईतने दर्द्से नीकली है यह गझल इसका एहसास करना भी मुमकीन नहि
दर्दभी खुद सहम जाये वैसी बात कही है शायराने
दाद दे भी तो कैसे एक एक शएरमे आह है
..बहोत खुब !
कहते रहीएगा..
काफ़ी अच्छे फोटॉ के साथ
शुक्रिया
dildip
November 2nd, 2009 at 12:57 ampermalink
” मेरा जीना इतना भारी क्यु है?
फिर सपना हर एक बाज़ी हारी क्यु है? ”
वफा कहां जयेगी, खूल कर सामने आयेगी !!!!!!
दिलकी बात है.
પટેલ પોપટભાઈ
May 27th, 2010 at 6:18 ampermalink