24 Jul 2009
कोनसा मज़हब है ईन भंवरोका?
जो फुलो पर मंडराते रहते है,
कोनसा मज़हब है ईन पंछीओका
जो अपने साथी के साथ ऊड्ते है,
कोनसा मज़हब ईन दरियाओका?
जो चांदके खीलतेही ऊछल पडते है.
कोनसा मज़हब है ईन इन्सानोका?
जो जुदाईमें दिनरात तडपते है?
खुदाने तो इन्सान बनाया था सबको, ,
हमने इन्सानको शेतान बनाये है.
सपना
Excellent thinking, a good poem
Shenny Mawji
July 27th, 2009 at 6:19 pmpermalink
गालिब का एक शेर हॅ
नक्श फरयादी हॅ किसी की शॉखिये तॅहरीर का
कागिजी हॅ पॅरहन हर पॅकरे तेहरीर का
इस का जो बॅकगिराऊंड नहीं जानता वोह कभी इसको समझ नहीं सकता
आपने खूब गजल लिखी मगर इसका पसमनजर जाने बगॅर कोई इस की गॅहराई तक नहीं पोहॉंच सकता
कलीम उल्लाह्
Kalimullah
August 3rd, 2009 at 5:22 pmpermalink
Sapna Bahot khoob likha hain aapne ,dil ki gaherayon se ye awaz meri bhi ati hai jo aaj aap se suna.Aaise hi likhte raheeye aur hume khush karte raheeye.
Shenny Mawji
August 23rd, 2009 at 6:10 pmpermalink
sapna, thank you . aapne kamaal likha hai!.
manoj gandhy
August 28th, 2009 at 1:45 ampermalink
बहुत खूब कही! हिन्दीमें अच्छी गझल कहेते हो. अभिनंदन!
सुधीर पटेल.
sudhir patel
September 21st, 2009 at 7:01 pmpermalink
अदभुत ब्लोग ! अदभुत रचना !
Jagat Avashia
December 3rd, 2009 at 3:28 pmpermalink
है मझहब तो है,
कम्बख्त ईन्सानोने नही पहेचाना
दिलकी कुशीओका ( मझहब )
પટેલ પોપટભાઈ
May 27th, 2010 at 6:22 ampermalink