22 Jul 2009

चंद अशार

Posted by sapana

चंद अशार

तुझसे मिलना एक सपना है,
जो कभी पूरा नही होना है,
बहोत सपने तूटते देखे है,
एक ओर सपना तूटना है.

तुमसे मिलना मुमकीन नहीं,
तुमसे दूर रेहना मुमकीन नहीं,
अब कोई करे तो भी क्यां करे,
बस मान लो जीना मुमकीन नहीं.

सूने है जिंदगीके साज़ सभी,
चारो ओर सन्नाटा सा है,
मेरी आवाज़ मुझ तक न्ही आती,
तन्हाईका यह आलम है.

अल्लाह्से तुमको मांगेंगे हम,
ज़न्नतके बद्ले तुमको चाहेंगे,
जिंदगी तो खतम हुई अपनी,
मौतके बाद जुदा न होंगे हम.

तेरी आरज़ु नहीं तेरी जुस्तजु नही,
दिल एक खाली जाम है अब,
जिसमे उम्मीदकी एक बुन्द नहीं,
मै वोह गुलाब हुं जिसमे खुश्बु नहीं.

मातम बरपा हुआ मेरे मरनेके बाद,
जब जिन्दा थी किसीने पूछा तक नही.
दिलका बहोत शोर सुन्ते थे सिनेमे,
तेरा नाम सुनके उफ तक कीया नही.

सपना

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2 Responses to “चंद अशार”

  1. आप की कविता का एक मुख्डा दिल पे आ गया

    सूने है जिंदगीके साज़ सभी,
    चारो ओर सन्नाटा सा है,
    मेरी आवाज़ मुझ तक न्ही आती,
    तन्हाईका यह आलम है.

    आभार्

    कौशल पारेख – वीनेलामोती

     

    kaushal

  2. मै वोह गुलाब हुं जिसमे खुश्बु नहीं.

    बुढापा बिचारा और क्या !!!!

     

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