8 Oct 2011

तन्हाइयां

Posted by sapana


तेरी चाहत मिले मुजेह यह मेरा नसीब नहीं
मेरी चाहत मिले तुजेह यह तेरा नसीब नहीं
खुदाने बनाये अपने अपने नसीब मुख्तलिफ
न तुं मेरा नसीब है न मै तेरा नसीब हुं

जब शामके रंग उतर चुके तब आये
जब रातके अंधेरे उतर आये तब आये
आंखोने इन्तेजार छोड दिया तब आये
जब आरज़ुने दम तोड दिया तब आये


लोग कहते है सुननेकी आदत डाल
दिल हि दिलमे रोनेकी आदत डाल
अल्फाज़ खंज़रकी तरह उतरते है सिनेमे
मुर्दा बनके तुं जिनेकी आदत डाल

जिनकी सुबह आंसुओसे शुरु होती है
जिनकी शाम अंधेरोमे खो जाती है
कहिये ऐसे लोग कहा जाते होगे?
जिनकी जिंदगी बेवज़ह गुज़रती है

ख्वाबोके ताज़महल तूटते लब्ज़ोसे
रिश्तोके शिशमहल तूटते लब्ज़ोसे
‘सपना’ तुं बस खमोश हो जा अब
दिलोके नाज़ुक तार तूटते लब्ज़ोसे

सज़देसे सर नहीं उठाउंगी
मै खाली हाथ नहीं जाउंगी
ऐ खुदा तुं है करीम बडा
करम कर वरना मर जाउंगी

सपना विजापुरा
१०-०७-२०११

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8 Responses to “तन्हाइयां”

  1. जिनकी सुबह आंसुओसे शुरु होती है
    जिनकी शाम अंधेरोमे खो जाती है
    कहिये ऐसे लोग कहा जाते होगे?
    जिनकी जिंदगी बेवज़ह गुज़रती है
    काफी गहराईसे आई हुई यह रचना है..

     

    dilip

  2. तेरी चाहत मिले मुजेह यह मेरा नसीब नहीं
    मेरी चाहत मिले तुजेह यह तेरा नसीब नहीं
    बहोत खुब्

     

    bhavesh

  3. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

     

    Sanjay bhaskar

  4. तुम…!!

    बिकता है जहां बिकती है जमी, बिकता है यहां इन्साकां झमीर

    पराये तो पराये रहे, अपना भी यहां क्या कोई नहीं…

    छुपते तो हो तुम पर्दे से लगे, पर्दे पर के तो तुम्हीं नहीं

    सुनता है जहां जब चीख दिया, सन्नाटों से तो डरते नहीं…

    जलती हैं शम्मा जब रातों में, परवाने का तो गम ही नहीं

    जलता है जिया जब दुर किया, गैरो से कोई शिकवा नहीं…

    बिकती है सांसे दुखता हैं दिल, रुकती हैं सांसे तब बिकती नहीं

    अंदाजे गलत क्युं समजते हो तुम,जीन्दा क्या जहांको रखते हो तुम…

    बनाते हो दस्तुर जहांमें तुम, समजते हो दुनिया बसाते हो तुम

    औरत से शिकवा करते हो , मर्दो सी क्या बात करते हो तुम….

    -रेखा शुक्ल(शिकागो)ये दोनो मेरी गझलोको सुर मे बध्ध किया है…लो
    थोडा कुछ और सुनो…

    तुमसे तुम्से तुम्से तुमसे…
    प्यार करना मना है दिल लगाना बुरा है
    जलाके जीन्दा वो बोले जीना भी मना है और मरना भि मना है…!!!
    -रेखा शुक्ल(शिकागो०

     

    Rekha shukla(Chicago)

  5. सपनाजी आपकी सभी गझले बहोत खुब है…और मुजे खुब पसंद आती है..!

     

    Rekha shukla(Chicago)

  6. जब शामके रंग उतर चुके तब आये
    जब रातके अंधेरे उतर आये तब आये
    आंखोने इन्तेजार छोड दिया तब आये
    जब आरज़ुने दम तोड दिया तब आये
    बोहॊत सुन्दर तस्सवुर ऒर ग़ज़ल
    अच्छी तरक़्क़ी की हॆ ग़ज़ल गोई में सपना

     

    Kalimullah

  7. Spanaji, Very very nice and good Gazal. Keep write…

     

    Pravin K.Shrimali

  8. Sapna ji dil ko chho lene wali rachana ke liye hardik badhai!

     

    Abid ali mansoori

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