4 Mar 2011

दोस्त

Posted by sapana

दोस्त भी दुश्मन निकले

प्यारमे  मतलब  निकले

जिदंगीका कयां हो यकीं

सपने भी बनझर निकले.


सपना विजापुरा

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7 Responses to “दोस्त”

  1. जिदंगीका कयां हो यकीं
    सपने भी बनझर निकले.

    सपने सभी देखते हैं। सपनों का मन से गहरा रिश्ता होता है। मन जितना निर्मल और पारदर्शी होगा, सपने भी उतने ही स्पष्ट, सटीक और सुलझे हुए दिखाई देंगे

     

    pragnaju

  2. सरस !
    सपने तो हमारी जिन्दगीके आयने हैं !
    हमारे सुख-दुःख के बिन्ब हमारे सपनोंमें मिलते हैं !

     

    P Shah

  3. कोइ इन्सान नहीं होता फितरते बेवफा अज़लसे
    पर जहांमे रेहकर वफा निभानी जरा मुश्कील है

    કોઈપણ માણસ જન્મથી બેવફા નથી હોતો
    પણ દુનિયામાં રહીને વફા કરવી જરાક મુશ્કીલ છે

    नजमा मरचंट

     

    Atul Jani

  4. कहीं हम तो वो दोस्त नहीं?

     

    સુરેશ જાની

  5. बहोत खूब सपनाजी ,
    कही वो में तो नहीं ?

    सपनो से भी शीख लेते,
    हर घटना से बोध लेते
    सुख दुख के जो पार ख़ुशी है
    क्यो न उसे हम पा न लेते

    कौन यहां पर अपनाजी
    कौन यहां बेगानाजी
    मिलके भी अनजान रहे
    है जग झूठा सपनाजी २.३.११

    પડેલું આંખથી આંસૂ વિરહનું ગીત થઇ જાયે
    હૃદયની ધડકનો તારી પ્રણય સંગીત થઇ જાયે

     

    dilip

  6. बहुत अच्छा मुक्तक!
    सुधीर पटेल.

     

    sudhir patel

  7. दोस्तों की बेवफ़ाई का अच्छा शिकव लिया हॆ
    सुन्दर शाइरी
    देखा जो तीर खा के कमीं गाह की तरफ़
    अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात होगई

     

    Kalimullah

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