29 Nov 2010
आज़ कविता नहीं बनेगी!!
बाज़ुके कमरेमे पिताज़ीकी खांसनेकी आवाज़
उनके बाज़ुमें दमेकी बिमारीसे हांफती मां
आज़ कविता नहीं बनेगी
आधा पेट भरके कामपे गया हुआ पति
आधा पेट भरी हुई कलेज़ेके टूकडेको
सुकी छातीसे दूध पीलानेकी कोशीषमे वोह
आज़ कविता नहीं बनेगी.
चुल्हेकी राखको फूकके जलानेकी कोशीषमे
धूएके बहानेसे आंखे पोंछती वोह..
आज़ कविता नहीं बनेगी
पाठशालासे फटे गंदे कपडेमे लपेटी
सुखी आंखे सुखा पेट..
मां ने ढका हुआ फिर भी
ज़ीसके उपर मख्खीया घुमराती है
ऐसा खाना खाने चली..
आज़ कविता नही बनेगी..
कविता तो होती है सपनोकी दुनिया
यहां कोइ सपना पूरा होनेवाला नही
आज़ कोइ कविता नही बनेगी..
सपना विजापुरा
‘आज कोई कविता नहीं बनेगी’ कहेके आपने जिन्दगीकी कडवाहटको बखूबी चीत्रित करके चोटदार कविता वनाली है!
सुधीर पटेल.
sudhir patel
November 29th, 2010 at 1:55 ampermalink
सपनाजी, जिवन की यथार्थ वास्तविकताको चित्रित कीया है..गरीबीमें जीवनका सम्तुलन चला जाता है..बहोत ही गहरा तादात्म्य है , निरीक्षळ है आपका जीवनके करुण पहलुओ से..आपके अलग ढन्गकी यह कविता पढी..
dilip
November 29th, 2010 at 2:17 ampermalink
वाह्..बहोत खुब..
कविता बनाइ कहां जातेी है सपना…वो तो खुद निकल आतेी है,उभर आतेी है ! है ना ?
बेबस जींदगीकी हकीकतका अच्छा-सा बयान काबिले तारीफ है..
छू गया मनको..
devika dhruva
November 29th, 2010 at 2:46 ampermalink
very touching and real Bahot khoob sapana
shenny Mawji
November 29th, 2010 at 3:33 ampermalink
बहोत बढिया … हकीकतो से टकराकर सपने चकनाचुर हो जाते है और ऐसे हालात में कविता लिखने की प्रेरणा पाना मुश्किल है … मगर सच्चाई तो ये है की दर्द से उभर कर ही दिल को झुँझला देनेवाली कविता का जन्म होता है … आपका अंदाज बहोत खुब रहा … लिखते रहीयेगा ।
Daxesh Contractor
November 29th, 2010 at 4:53 ampermalink
कविता तो बन गई..और मुकम्मल
dr. firdosh dekhaiya
November 29th, 2010 at 10:14 ampermalink
कविता तो होती है सपनोकी दुनिया
यहां कोइ सपना पूरा होनेवाला नही
आज़ कोइ कविता नही बनेगी..
बोहोत ही सुन्दर
आज नए अंदाज़ से शाइरी की हॆ सपना तुम ने
सच हॆ भूके का सपना किया होसकता हॆ
भूके को चांद रोटी की शकल का नज़र आता हॆ
ऒर चकोर को चांद में अपना मॆहबूब नज़र आता हॆ
Kalimullah
November 29th, 2010 at 2:17 pmpermalink
आज़ कविता नही बनेगी..
कविता तो होती है सपनोकी दुनिया
यहां कोइ सपना पूरा होनेवाला नही
आज़ कोइ कविता नही बनेगी..
सुंदर
…और कविता बन ग इ
कुछभी उसे पर आया न रास,
अपनेयोग्य कुछ पाया न खास
रिक्तहस्त न लौटुंगा पर था विश्वास,
ले स्व-प्रकटनकी अनबुझी प्यास.
सहसा, अभिव्यक्तीकी बेला आन पडी
दृष्टी यकायक जब अनुभवकी मुडी
जहां एक रचना थी असमंझस खडी
पहचान गया ,यही है वह घडी
कहा उसने ,
“अब तुम और समय ना निकालो,
मुझे जल्द अपनी पंक्तियोंमें ढालो!”
उसकी मनीषा मैं कैसे टाल पाता,
किया आरंभ फिर लिखने यह कविता !
pragnaju
November 29th, 2010 at 5:04 pmpermalink
very very very nice poem sapanaji!
http://www.inkandi.com
if u would like to see some of my work
munira
August 8th, 2011 at 6:05 ampermalink