24 Nov 2010

महोबत

Posted by sapana

तेरी यादसे दूर नहीं रहे सकते
ऐसी बेवफाई नही कर सकते
चाहो तो आज़मा लो हमे तूम
तूमसे बिछडके जी नहीं सकते

मनो मिट्टीके नीचे  जाके सो गये अब
चहेकते  थे  बोलते बंध हो गये अब
अब जैसे मुहमे जबान ही नही है मानो
ऐसे खामोश है वोह की रो गये अब


तेरा और मेरा कॉई रिश्ता नहीं
फिरभी दिल तुज़े भूलता नहीं
दिल समजानेसे समज़ता नहीं
ज़हेनकी बात पगला  मानता नहीं


कितना भी कर लो यह महोबत जीतनेवाली नहीं
और यह दुनिया है जो कभी हारनेवाली  नहीं
मौतकी मंज़िल तक पहोंचाके छोडेंगी यह दुनिया
पर यह महोबत है जो कभी घटनेवाली नहीं

सपना विजापुरा

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7 Responses to “महोबत”

  1. दिलकी भावनाओंका सरल चित्रण.

    यह शेरमें तीसरी लाईनमें ‘जैसे’ का दो बार होना खलता है .

    मनो मिट्टीके नीचे जाके सो गये अब
    चहेकते थे बोलते बंध हो गये अब
    अब जैसे मुहमे जबान ही नही है जैसे
    ऐसे खामोश है वोह की रो गये अब

    और इस शेरमें आखरी (चौथी) लाईनमें ‘ जहेन है की’ होना चाहिये ऐसा मुझे लगता है.

    तेरा और मेरा कॉई रिश्ता नहीं
    फिरभी दिल तुज़े भूलता नहीं
    दिल समजानेसे समज़ता नहीं
    ज़हेनकी पगला मानता नहीं

     
  2. चाहो तो आज़मा लो हमे तूम
    तूमसे बिछडके जी नहीं सकते..
    अंतरकी सच्चाई और गहराई से लीखा हुआ..
    मनो मिट्टीके नीचे जाके सो गये अब /यहा मानो..शायद
    चहेकते थे बोलते बंध हो गये अब
    कितना भी कर लो यह महोबत जीतनेवाली नहीं
    और यह दुनिया है जो कभी हारनेवाली नहीं
    महोबतके जजंगमे के बारेमें बहोत ही गहरी और सच्ची वात कही है
    आपके विविध अशआर..नझमाकी याद दिलाते है..
    लीख्ते रहीए ईसी तरहा..पुरी एक गझल

     

    dilip

  3. तेरी यादसे दूर नहीं रहे सकते
    ऐसी बेवफाई नही कर सकते
    चाहो तो आज़मा लो हमे तूम
    तूमसे बिछडके जी नहीं सकते

    शुभान अल्ला
    कितनी बेबस हे जिन्दगी किस्मत के आगे !
    हर सपना तुट जाता हे किस्मत के आगे !!
    जिसने कभी जुकना नहीं सिखा !!!
    वोह भी जुक जाता हे महोबत के आगे
    जगजीतसिंहका सूर गुंजने लगा
    ना महोबत ना दोस्ती के लिए,
    वक़्त रुकता नही किसी के लिए.

    दिल को अपने सजा न दे यूँही,
    इस ज़माने के बेरुखी के लिए.

    कल जवानी का हश्र क्या होगा,
    सोच ले ये दो घडी के लिए.

    हर कोई प्यार ढूँढता है यहाँ,
    अपनी तनहा सी जिंदगी के लिए.

    वक़्त के साथ साथ चलता रहे,
    यही ही बेहतर आदमी के लिए.

     

    pragnaju

  4. बोहोत सुन्दर
    मोह्ब्बत करने वाले दिल पर जो गुज़रती हॆ
    हर लमहे को आपने ग़ज़ल में जमा करदिया हॆ
    बोहोत ख़ूबसूरत शाइरी
    हम परवरिश लॊहो क़लम करते रहें गे
    जो दिल पे ग़्ज़रती हॆ रक़म करते रहें गे
    सपना अब फ़ॆसबुक पर भी अपनी गज़लें पोस्ट करें

     

    Kalimullah

  5. खूब सूरत कताएं!

    “अब जैसे मुहमे जबान ही नही है जैसे”

    ईस पंक्तिमें ‘जैसे’ दो बार आता है, तो आखरि ‘जैसे’की जगह ‘मानो’ अच्छा रहेगा ऐसा मुझे लगता है!

    सुधीर पटेल.

     

    sudhir patel

  6. sapnaji bahot umda ashaar bheje he aapne, me ne fowran kagaz me likh liya PARWIN SHAKEER ki yaade taza ho gayi wah kiya baat hae

     

    sapana

  7. तेरी यादसे दूर नहीं रहे सकते
    ऐसी बेवफाई नही कर सकते
    चाहो तो आज़मा लो हमे तूम
    तूमसे बिछडके जी नहीं सकते

    बारबर पढनी और अच्छी लहे ऐसी पन्क्तिया..जो भी पढे उसे सही लगे मुझे भी लगता है जेसे मेरी ही बात कही हो शायरने..बहोत बढीया..

     

    dilip

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