13 Oct 2010

सपने

Posted by sapana

कभी तुजे इतना करीब पाती हुं
के हाथ बढाके अभी छू लुंगी तुजे
अब नहीं तन्हाई तडपाती मुजे
अब तेरे बगैर ही जी लुंगी मैं


तुमने ऐसे रंग भरे है जीवनमे
मुस्कुरुहाटसी रहेती है चहेरेपे
पतझडमे भी फूल खील गये है
पंछी चहेकने लगे है चमनमे

तेरी यादको न दुनियाका डर
तेरी यादको न मज्ञहबका डर
वो तो बेधडक चली आती है
एक तुं है जो कभी नही आता

छोटे छोटे सपने है मेरे
नन्हे मुन्हे सपने है मेरे
कही निन्द्से न जाग जाउ
बहोत ही नाज्ञुकसे सपने है मेरे

सपना विजापुरा

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6 Responses to “सपने”

  1. वाह ! बहुत खुब !

    कही निन्द्से न जाग जाउ

    बहोत ही नाज्ञुकसे सपने है मेरे

     

    ઈશ્ક પાલનપુરી

  2. तुमने ऐसे रंग भरे है जीवनमे
    मुस्कुरुहाटसी रहेती है चहेरेपे
    बोहोत ख़ूब सपना
    मोहब्बत के मारों को केसे केसे सपने नज़र आते हॆं
    हर एक का ऎहवाल अपनी शाइरी में बयान किया हॆ
    ग़ालिब ने भी कहा था
    ईश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
    दर्द की दवा पाई दर्द बे दवा पाया

     

    Kalimullah

  3. कभी तुजे इतना करीब पाती हुं
    के हाथ बढाके अभी छू लुंगी तुजे
    अब नहीं तन्हाई तडपाती मुजे
    अब तेरे बगैर ही जी लुंगी मैं

    तुमने ऐसे रंग भरे है जीवनमे
    मुस्कुरुहाटसी रहेती है चहेरेपे
    पतझडमे भी फूल खील गये है
    पंछी चहेकने लगे है चमनमे
    वहुत अच्छा

    अहसास ,संवेदनाएं सिर्फ मानव हृदय में ही नहीं पनपती पर हर उस जगह में समा जाती है जिससे हम जुड़े होते हैं फिर चाहे वो हमारा घर हो या हर वो जगह जो हमसे जुड़ी हो .संवेदनाएं सभी में हैं बात सिर्फ महसूस करने की है जुड़ाव की है 1जैसे हमें अनुभूति होती है अपने घर व किसी स्थान के प्रति वैसे ही ये तथाकथित निर्जीव चीजें हमारे प्रति संवेदनशील होती हैं 1जब किसी परिवार का सदस्य कहीं चला जाता है तो सबको उसकी कमी ख़लती है वैसे ही घर व उससे जुड़ी चीजें ,जगह भी उसकी कमी को महसूस करते हैं बस बयां नहीं कर पाते अपने अहसास को सिर्फ तकते रहते हैं निशब्द ………अनजान चेहरों को कि शायद कोई उनकी संवेदनाओं को पढ़ सके……….1कुछ समय पहले किसी के जाने से उस जगह के अधूरेपन को जाना मैनें , बस उसका हर कोना ये कहता महसूस होता था

     

    pragnaju

  4. Very peaceful very nice

     

    shenny Mawji

  5. तुमने ऐसे रंग भरे है जीवनमे
    मुस्कुरुहाटसी रहेती है चहेरेपे
    पतझडमे भी फूल खील गये है
    पंछी चहेकने लगे है चमनमे

    छोटे छोटे सपने है मेरे
    नन्हे मुन्हे सपने है मेरे
    कही निन्द्से न जाग जाउ
    बहोत ही नाज्ञुकसे सपने है मेरे

    बहोत हि अच्छी भावनाये अभिव्यक्त हुई है
    कौन नही चाहता की जीवन रंग से, खुशीयोसे, सुख्से आसश्ा अरमानोके सुस्वप्नसे भर जाय, खिल जाय हर हो जाय…
    मगर होत हे ऊलटा की जीवन बेरंग ऊदास नफरत दुःख और दुस्वपन से भरा दिल्ख्ता है..
    बहोत ही अच्छा नजरिया है..
    पतझडमे भी फूल खील गये है
    पंछी चहेकने लगे है चमनमे

    पुरी कविता ही कोट कर देने जैसी है..
    लिख्ते रहीए और खिलते रहीए…
    शुभेच्छ्ा

     

    dilip

  6. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली…. गजब का लिखा है

     

    Sanjay bhaskar

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