21 Apr 2010
नजर आयेगी
यह गमकी शब गुज़र जायेगी,
सुबहकी किरण नज़्रर आयेगी.
खुशियोंका पीछा करते है सालोसे,
यह खुशी बचकर किधर जायेंगी?
जन्न्तकी चाह्मे बडे रंज उठाये,
जन्न्त मिलेंगी जब मर जायेंगी.
लो फिर जली दुनिया खुशियोंसे,
अब वोह कुछ न कुछ कर जायेंगी.
मुस्कुराना और शरमाना है प्यार,
मुस्कुराते पलके जुकाकर जायेंगी.
एक ही ‘सपना’ देखती है यह आंखे,
अब निंद बेचारी किधर जायेंगी?
एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल, एक ही ग़ज़ल में मुख़तलिफ़ ख़यालात का हुजूम
पॆहलॆ शेर में हालात से समझोता
यह गमकी शब गुज़र जायेगी,
सुबहकी किरण नज़्रर आयेगी.
फिर दुनिया से शिकायत
लो फिर जली दुनिया खुशियोंसे,
अब वोह कुछ न कुछ कर जायेंगी.
ऒर फिर आख़िर में वोही आशिक़ों की रिवायती सोच
एक ही ‘सपना’ देखती है यह आंखे,
अब निंद बेचारी किधर जायेंगी?
यानी
दिल लिया था तो ये आंखें भी ले जाता
में फ़क़त एक ही तसवीर कहां तक देखूं
Kalimullah
April 21st, 2010 at 10:15 ampermalink
मुझे सारी गझल अच्छी लगी..सभी शेर अच्छे लगे..
यह गमकी शब गुज़र जायेगी,
सुबहकी किरण नज़्रर आयेगी.
खुशियोंका पीछा करते है सालोसे,
यह खुशी बचकर किधर जायेंगी?
बहोत पतेकी बात है..ईन्सान सीखे तब..या घटनाओसे बोध ले तो..सम्भव है की खुशी मिले ..मगर ज्यादातर आद्तो के शिकारकी वजह से गति वर्तुलाकार ही बनी रहती है…फीर खुशी भी पलभर फीर जैसे थे…
बहोत अच्छए विचार आपके….मुझे तो ऐसे विचार आने लगे तो लिख दिया…अच्छी लगी आपकी गझल..और भी बढीया कर सकती हो…
dilip
April 22nd, 2010 at 10:12 pmpermalink
ये सुबह कभी तो आयेगी
ये सुबह कभी तो आयेगी — “फिर सुबह होगी”
“खुशियोंका पीछा करते है सालोसे,
यह खुशी बचकर किधर जायेंगी? ”
आशायें अमर होती है.
बहोत खूब, वल्ला कमाल्
પટેલ પોપટભાઈ
May 27th, 2010 at 5:44 ampermalink
“यह गमकी शब गुज़र जायेगी,
सुबहकी किरण नज़्रर आयेगी.
खुशियोंका पीछा करते है सालोसे,
यह खुशी बचकर किधर जायेंगी? “
पटेल पोअटभाई
May 27th, 2010 at 11:21 ampermalink
ગુસ્તાખી માફ,
હિન્દી લખવા ગયો પણ કવિતાને મેચ થાય તેવું ના લાગ્યું તેથી ગુજરાતી માંજ લખુછું!
સપ્નાજી તમારા કાવ્ય વખાણું કે પછી તેના ફોટા વખાણું? બંને નું અજોડ મિશ્રણ છે.
dr bharat
June 22nd, 2010 at 5:54 pmpermalink
खूबसूरत गझलका मत्ला और मक्ता काबिले-दाद है!
अभिनंदन!!
सुधीर पटेल.
sudhir patel
July 10th, 2010 at 8:29 pmpermalink