15 Jan 2010

रातभर

Posted by sapana


निंद क्यु नही आती है रातभर,
तन्हाई तडपाती रही रातभर.

गुल हो गये है सब रोशन्दान पर,
एक शमा जलती रही रातभर.

तेरी बाहोकी गरमीसे न बच सकी,
एक शमा पिघलती रही रातभर,

बिस्तरकी सिलवटे देख लो तूम,
करवटे बदलती रही रातभर.

किसीके मौतका पयगाम  है,
रोनेकी आवाझ आती रही रातभर.

चांद तो आ गया आसमान पर,
चांदनी चुभती रही रातभर.

दरवाझेपे दस्तक सुनी थी शाममे,
‘सपना’ इन्तेझार करती रही रातभर.

सपना

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12 Responses to “रातभर”

  1. वाह बहुती ही खुब सुरत गझल….यु ही लिख्ते रहे रातभर…

     
  2. निंद क्यु नही आती है रातभर,
    तन्हाई तडपाती रही रातभर.
    चांद तो आ गया आसमान पर,
    चांदनी चुभती रही रातभर.
    बहोत खुब पारम्परिक अभिव्यक्ति. अच्छी लगी पन्क्तियां. बहर की सही सम झ् से और भी और भी अच्ची हो सकती थी….लिखते रहीएगा.

    दूर ठेलाती सवारो नीद क्यु आती नहि
    जम्पवा ना दे विचारो नीन्द क्यु आती नहि

     

    Dilip

  3. यहां बात जुदऐ की है या मिलन की ?

    ‘तेरी बांहो की गरमी से..’ शेर निकाल दो तो बाकी पूरी गझल एक सुरमें बनेगी

    लता हिराणी

     

    Lata Hirani

  4. Excellent. Keep it up.

     

    Heena Parekh

  5. किया आशिक़ों के जज़बात की तरजुमानी की हे सपना
    बिस्तरकी सिलवटे देख लो तूम,
    करवटे बदलती रही रातभर.
    मीर ने कगा था
    मीर के सिरहाने आहिसता बोलो
    अभी टुक रोते रोते सो गया हॆ

     

    Kalimullah

  6. बहुत खुब सपनाजी

    जरा गौर फरमाइएगा

    तेरे वादेकी उलफतमे जुलसते रहे रातभर
    इन्तझार में उनके हम तडपते रहे रतभर

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    Mayur Prajapati

     

    Mayur Prajapati

  7. good one

     

    Neela Kadakia

  8. सुन्दर रचना..

     

    nilam doshi

  9. किसीके मौतका पयगाम है,
    रोनेकी आवाझ आती रही रातभर.
    बहुत खुब…

     

    vishwadeep

  10. दरवाझेपे दस्तक सुनी थी शाममे,
    ‘सपना’ इन्तेझार करती रही रातभर.

    Gamyu….

     

    "માનવ"

  11. “एक शमा जलती रही रातभर
    एक शमा पिघलती रही रातभर
    तन्हाई तडपाती रही रातभर
    इन्तेझार करती रही रातभर”

    बहुत खुब मासाल्ला

     
  12. Beautiful poem. I really enjoyed your blog. I have bookmarked it. Thank you for visiting my blog 🙂

     

    Kay Kay

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