7 Dec 2012
उन आंखोकी लाये ताब कोई
मदभरी उन आंखोमे है नशासा
बुत परस्ती भी चाहे मै कर लु
उंगलीयोपे जो गिन रहे है गुनाह
कत्लका जाल बिछ गया हर सुं
खूली आंखोका सपना है देखो
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8 Responses to “सराब कोइ”
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हिन्देीमेँ अच्छी कोशिश…!!
Ashok Jani 'Anand'
December 7th, 2012 at 12:12 pmpermalink
उन आंखोकी लाये ताब कोई
पा सकु ना है वोह सराब कोइ
मदभरी उन आंखोमे है नशासा
जैसे सागरमे हो शराब कोइ
माशा अल्लाह
याद
मैं भी तुझ से बिछड़ के सर-गर्दां
तेरी आँखों में भी नमी है अभी
मैं ने माना बहुत अन्धेरा है
फिर भी थोड़ी सी रोशनी है अभी
pragnaju
December 7th, 2012 at 5:29 pmpermalink
प्रिय सपना,
हरेक कविता पढी. बहूत अच्छी. खास करके ‘महोबत.’ प्यारसे लिखते रहीये.
सरयू
SARYU PARIKH
December 7th, 2012 at 10:12 pmpermalink
उन आंखोकी लाये ताब कोई
पा सकु ना है वोह सराब कोइ
मदभरी उन आंखोमे है नशासा
जैसे सागरमे हो शराब कोइ
सपनाजी, उर्दुमें भी काफी अच्छी तरह से आप गझल लीखते हो..
और भी ज्यादा लीख्ते रहीए और शेर करेते रहे यही कामना है.
dilip
December 8th, 2012 at 11:39 pmpermalink
Subhanallah Bahot Khub
Shenny Mawji
December 9th, 2012 at 5:22 pmpermalink
उर्दु मे गझल लिख्न ओर साथ मे गुजरति ओर हिन्दि मे लिख न ओर भि मुस्किल है मगर विशय वस्तु के आधरित सब्दो को पध्नेवलो को मध्य नझर रख्तेहुवे लिख्न ओर भि मुस्किल है…फक्र है एसि सपजि जन फरियद के साथ है…बहोत ध्न्यवद्….
pradip raval
December 12th, 2012 at 9:07 ampermalink
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
मदभरी उन आंखो में है नशा-सा
जैसे सागर में हो शराब कोई
आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
बहुत ख़ूबसूरत !
उंगलीयोपे जो गिन रहे है गुनाह
उनका भी तो करे हिसाब कोई
बेहतरीन !
आदरणीया सपना जी
आपके यहां आ कर बहुत ख़ुशी हुई …
आपकी कई रचनाएं पढ़ीं ,
…अच्छा लिखती हैं आप !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
नव वर्ष के लिए शुभकामनाएं !
साथ ही
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार
January 15th, 2013 at 9:29 pmpermalink
sapna really wonderful poems,gazals n shayaries.
i read your all three blogs. keep it up . my best wishes 4 youu.
kalyani vyas
March 7th, 2013 at 5:29 pmpermalink