24 Apr 2009

Posted by sapana

जन्न्तकी सैर करके आई मैं
मेरा मेहताब ,मेरा आफताब छोडके आई हुं मैं ,
अब तारीकी है जीवनमे, रोशनी छोडके आई हुं मैं ।
अब उगलले जीतना ज़हर है तुजमे ऐ ज़माने ,
उनके आबे -हयात शिरी होठोको चुमके आई हुं मैं ।
कुछ भी न रहा याद मुझे महोबतके सीवा,
उनके दिलसे मेरा दिल जोडके आई हुं मैं
अब नही छुएगे मुझे ताने तीर और खंज़र ,
तेरी महोबतका बकतर ओढ्के आई हुं मैं ।
दिलकी बातोपे तवज्जो दी हमने ऐ, खुदा,
अब जहेनको अनसुना करके आई हुं मैं
तुजे पता नही शायद तेरे छुनेसे जी उठी हुं मैं,
एक साथ कई जिन्दिगिया जी आई हुं मैं.
वोह समंदरका किनारा ,वोह तेरे हाथोमे मेरा हाथ,
मानो या ना मानो ज़न्नत की सैर करके आई हु मैं .
कभी तेरी यादमे हँसना,कभी तेरी यादमे रोना,
लगता है खुदको दीवाना करके आई हुं मैं
अब नही ये सुनहरे सपने मेरे तन्हा,
तेरी आँखोमे एक सपना छोडके आई हुं मैं .
सपना

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